मर्द या नपुंसक,
खुद को मर्द साबित करने में
अकेली, असहाय महिला पर जोर आजमाईश करता
हैवानियत की हदों को पार करता हुआ
अपनी नपुंसकता को प्रदर्शित करता
शरीर से मर्द
मैं इक बलात्कारी
नपुंसक मानसिकता का परिचायक
समाज रुपी शरीर का सड़ा-गला हिस्सा
काट कर अलग कर देने योग्य
फाँसी के उम्मीद और इंतजार में
पकड़ा गया बलात्कारी
मैं बलात्कारी, तो आप भी हैं हवस के पुजारी
राह चलती दूसरों की बहन-बेटियों के अंगों को
अपनी आँखों से भाँपते और नापते
मन ही मन वासना के सागर में गोते लगाते
अपने मर्दानगी की संतुष्टि करते
फिर मैं अकेला कैसा बलात्कारी
सोच बदलिए फिर समाज बदलेगा
अन्यथा इंसानियत को शर्मशार करता हुआ
बलात्कार का यह सिलसिला नहीं थमेगा।
Please send me TA old exam papers to narayan_nayak@rediffmail.com
जवाब देंहटाएंit is already in my blog. wait for paper of 10th feb 2013.
जवाब देंहटाएंHey Manish, as i am attending this exam for the first i dont have any idea about the same... can you mail me the Question papers and essay topics of TA on niti288@gmail.com . i will be very thankfull to you.
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