गुरुवार, 20 दिसंबर 2012


बदलते भारत की तस्वीर - वालमार्ट
आजकल बड़े ही जोर-शोर से पत्र/ पत्रिकओं में एफ. डी. आई. के उपर बहस चल रही है। नामचीन हस्तियों के विचार इसके पक्ष और विपक्ष में लिखे जा रहे हैं। पाठकों का दिमाग हिचकोले खा रहा है। कभी लगता है कि पक्ष सही है और कभी विपक्ष सही प्रतीत होता है। ऐसे ही समय में हंगामा खड़ा हो जाता है कि वालमार्ट ने 125 करोड़ रुपए लाँबिंग के लिए खर्च किए हैं और मुद्दा और गरमा जाता है। संसद में सुश्री सुषमा स्वराज कहती हैं कि यह विकास का नहीं बल्कि विनाश का गड्ढा है।
गौर से देखा जाए तो सतही तौर पर इसके तो फायदे ही नजर आते हैं। देश में विदेशी पूँजी का आगमन होगा और देश की लड़खड़ाती हुई अर्थव्यवस्था को सभँलने का मौका मिलेगा। पहली नजर में तो ये खुशी की ही बात है, लेकिन दूरगामी परिणाम? हम भारतीय किसी भी निर्णय को लेने से पहले उसके दूरगामी परिणामों पर गौर जरुर करते हैं। इस विदेशी पूँजी के आगमन के परिणाम आने वाले वर्षों में चरमराती भारतीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ करेगें या सुषमा जी के कथनों के अनुसार देश को गड्ढे में ले जाएँगे, इसपर विचार करना बहुत ही जरुरी है।
भारत अंतराष्ट्रीय पटल पर विशाल उपभोक्ता वाला देश है और यहाँ व्यापार की असीम संभावनाएँ हैं। हर विकसित देश हमें दुधारु गाय की तरह दुहने की कोशिश में लगा रहता है। वालमार्ट द्वारा किया गया लाँबिंग में करोड़ों रुपए का खर्च इस बात की पुष्टि करता है। उनके द्वारा किया गया ये खर्च चारे की तरह ही है जिसमें हम फँस गए हैं।  आज के संदर्भ में अगर देखें तो भारतीय रुपया डालर के मुकाबले दिन पर दिन गिरता ही चला जा रहा है। एक साल पहले जो डालर 44 रुपया था आज उसकी कीमत 56 रुपया हो गया है। चीनी उत्पादों से भारतीय बाजार अटा पड़ा है। अनेक भारतीय उधोग जो उत्पादन का कार्य करते थे या तो बंद हो चुके हैं या बंद हो रहे हैं और इन चीनी उत्पादों की मार्केटिंग करने लगे हैं, यानि की मालिक से नौकर की हैसियत में तब्दिल हो गए हैं और उनके कारखानों में काम करने वाले बेरोजगार हो गए हैं। ऐसी विकट परिस्थितियों में खुदरा व्यापार में वालमार्ट की भागीदारी संकट को और गहरा करने वाला है।
बहुत पुरानी कहावत है, - इतिहास खुद को दुहराता है। भारतीय जनमानस के दिलो-दिमाग में आज भी यह बात ताजा है कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यापार से शुरुआत कर कैसे भारत की अर्थव्यवस्था को खोखला कर दिया था। खुदरा व्यापार में निवेश उसी श्रृखला की आगामी कड़ी है। समय के साथ-साथ तरीका बदल चुका है लेकिन विकसित देशों के इरादे अभी भी वहीं है। पहले राजनीतिक रुप से गुलाम बनाकर हमें जर्जर किया। वर्तमान परिपेक्ष में यह संभव नहीं है तो हर संभव प्रयास से भारतीय अर्थव्यवस्था पर काबिज होने की जुगत किया जा रहा है और उनके इन नापाक इरादों में साथ देने के लिए हमारे देश में हमेशा से जयचंद जैसे गद्दार रहे हैं जिनके लिए देशहित से ज्याद स्वहित महत्वपूर्ण है।
हमारे भूतपूर्व राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलाम साहब ने अपनी पुस्तक  ‘विंग्स आँफ फायरमें यह भविष्यवाणी की थी कि सन् 2020 तक भारत विश्व का सबसे शक्तिशाली देश होगा। शायद कलाम साहब को इसमें संशोधन करना होगा। दूरगामी परिणाम कहीं से भी सुखद अनुभूति नहीं देते हैं। देश का पैसा अभी के मुकाबले कहीं ज्यादा धड़ल्ले से विदेशों में जाएगा और हमारी अर्थव्यवस्था और खस्ताहाल हो जाएगी। डालर बढता जाएगा, रुपया धटती जाएगी। वस्तुओं की कीमत इतनी ज्यादा बढ़ जाएगी की खरीदना बूते के बाहर की बात होगी।
लेकिन हमें इन सबसे कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा क्योकि हम भाग्यवादी सोच रखते हैं। भाग्य में यह लिखा है तो होकर रहेगा। इसलिए मित्रों, कल के लिए आज क्यों रोएँ। साल 2012 में ओलंपिक उपलब्धि को छोड़कर ऐसा कुछ भी नहीं है जिसपर फ्रख महसूस किया जाए और ऐसी अनगिनत धटनाएँ हैं जिसपर सिर शर्म से झुका ही रह जाए।
खैर साथियों, छोटा सा जीवन है और कष्ट अनगिनत। तो इन सब दुविधाओं, जद्दोजहद से बाहर निकल कर नये साल का स्वागत जोश-खरोश के साथ कीजिए और मेरे साथ आप भी गुनगुनाइये –
                 सोचना क्या, जो भी होगा देखा जाएगा।
                    जो होना होगा, होगा वही, सोच के तू क्या पाएगा।।        

4 टिप्‍पणियां:

  1. gyanvardhak lekh... pdh kar meri soch par kuch prkash ki kirane giri...

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    1. धन्यवाद, आपको यह लेख पसंद आया। इस सिलसिले में मेरा पहले का लेख - देश बचाओ अभियान - एक निवेदन भी जरुर पढें। अंततः हम ही भुक्तभोगी बनते हैं तो हमें ही जागरुक होना होगा।

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